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पूजा,यज्ञ एवं अनुष्ठान की परंपरा और महत्त्व

यज्ञ की ऊष्मा मनुष्य के अंत:करण पर देवत्व की छाप डालती है |
प्रकृति का स्वभाव यज्ञ परंपरा के अनुरूप है। समुद्र बादलों को उदारतापूर्वक जल देता है, बादल एक स्थान से दूसरे स्थान तक उसे ढोकर ले जाने और बरसाने का श्रम वहन करते हैं। नदी, नाले प्रवाहित होकर भूमि को सींचते और प्राणियों की प्यास बुझाते हैं। वृक्ष एवं वनस्पतियाँ अपने अस्तित्व का लाभ दूसरों को ही देते हैं। पुष्प और फल दूसरे के लिए ही जीते हैं। सूर्य, चन्द्र, नक्षत्र, वायु आदि की क्रियाशीलता उनके अपने लाभ के लिए नहीं, वरन् दूसरों के लिए ही है। शरीर का प्रत्येक अवयव अपने निज के लिए नहीं, वरन् समस्त शरीर के लाभ के लिए ही अनवरत गति से कार्यरत रहता है। इस प्रकार जिधर भी दृष्टि डाली जाए, यही प्रकट होता है कि इस संसार में जो कुछ स्थिर व्यवस्था है, वह यज्ञ वृत्ति पर ही अवलम्बित है। यदि इसे हटा दिया जाए, तो सारी सुन्दरता, कुरूपता में और सारी प्रगति, विनाश में परिणत हो जायेगी। ऋषियों ने कहा है- यज्ञ ही इस संसार चक्रकी धुरी है। धुरी टूट जाने पर गाड़ी का आगे बढ़ सकना कठिन है।

हमारे द्वारा निम्नलिखित विशेष यज्ञ एवं अनुष्ठान सम्पन्न कराये जाते हैं |

•शास्रोक्त विधि से ग्रह विचार के उपरान्त ३ चक्रीय एवं ७ चक्रीय वैदिक यज्ञों का सम्पादन
• बीज मंत्रो द्वारा हवन कार्य
• सम्पूर्ण रुद्राभिषेक
• सुंदरकांड पाठ
• तांत्रोक्त नवरात्रि पूजन
• दीपावली पूजन - पुरुष सूक्त एवं लक्ष्मी सूक्त यज्ञ
• कालसर्प पूजन - यंत्र पूजन , गरुण मंदिर पूजन
• महामृत्युंजय अनुष्ठान
• गीता ज्ञान यज्ञ
• पित्र दोष निवारण

उपरोक्त सारी पूजा कार्यक्रम , यज्ञ एवं अनुष्ठान पूजा व्यक्ति विशेष के अनुसार निर्धारित की जाती हैं| इनके विषय में पूर्ण जानकारी हेतु व्यक्तिगत तौर पर संपर्क करें अथवा मेल/ व्हाट्सएप्प नंबर पर संपर्क करें |
मेल : askme@panditomdubey.com
व्हाट्सएप्प नंबर : + 91-8545905813